Sep 28, 2013

डर...



तुम्हारा यूँ दबे पाँव आना,
शोर को निस्तब्ध का जाना
धडकनों को सुनना, मुस्कुरा
उन्हें अपने संग मिला जाना ....

तुम्हारा यूँ दबे पाँव आना
रिश्तों की उलझी गांठें खोल जाना
माया से बंधी करे डोर से हमे छुडा
उन्हें अपने में मिला जाना ....

तुम्हारा यूँ दबे पाँव आना
अधूरी प्यास, अनछुए सपनों को
परिंदों सा उन्मुक्त कर,
उन्हें निश्नाबुत बना जाना .... 

तुम्हारा यूँ दबे पाँव आना
नि:शब्द,
निश्छल,
निर्जीव सा धरा पर छोड़
हमे खुद में मिला जाना 

डर लगता है सोच,
यूँ दबे पाँव तुम्हारा आना
रिश्तों को यूँ ही बे-अदब छोड़ जाना
अधूरे सपनों का गला सहसा छोड़ जाना
इच्छाओं को यूँ फेंक कर मिटा जाना

डर लगता है हमे तुझसे, और
तेरे इस तरह से बे-अदब आना
रे काल
डर लगता है तेरा अचानक आना 



** मेरे दोस्त अर्पण के अचानक निधन के बाद ......२८/९**




Sep 16, 2013

जिंदगी

कई कई बार रेत के टीले

पर बैठ
सोचा है हमने
छोटे छोटे सपनो को
बन बिगड़ते देखा है

स्वयं रुक कई बार
उन्हें सहलाया
प्यार से गोद ले
उठाया - पुचकारा,

दो पल जिंदा रखने के खातिर,  
दो पग चलते देखने के खातिर
कोशों गोद में सहेजा चलता गया

पर, बिखरना लक्ष्य था उनका ,
तभी आगोश से  
फिसल, उन्हें बिखरते देखा था .
रुक, कई बार सपनों को अपने
दम तोडते देखा था ...

विदा होते देख सपनों को
कई बार नैनों से
आंसू के कुछ बूंदों को  भी
आँखों से विदा होते देखा था

कई कई बार रेत के टीले
पर बैठ
छोटे छोटे सपनो को
बनते बिगड़ते देखा था

लहरों ने कई बार टोका
गुस्से से कई बार
रेत के टीले को बहा
हमे सपनों से घसीटा ...
फिर भी,
मोल न समझा कभी लहरों का

लहरों के थाप से
जब ढह गयीं टीले
बेबस हो दो पल को रुके
खुद को समेटा  
नज़रें दौडाई तो
देखा,

वहीँ शव पड़ी
सपनों के ओट से
निकल आई थी
जिंदगी के दो पत्र...

थाम
उन नन्हे पत्रों को, मैं चलता गया
जिंदगी से रूबरू होता  गया
टूटे सपनों से दूर, मैं जीवंत होता  गया

आज जिंदगी के आगोश में, मैं आ गया
आज जिंदगी के आगोश में, मैं आ गया

Sep 4, 2013

तेरे शर्ट का बटन मैं सोनिये.....

सुबह भागती जिंदगी में
शर्ट के नन्ही सी बटन का
शर्ट से टूट फिसल जाना
सिलसिला ये एक पूर्णविराम का
सिलसिला भागती जिंदगी का ठहर जाने का

रुक पल भर को,
रोक भागमभाग को,
ठहरा मैं,
गुहार लगायी,
आंटे सने हाथ में उनका आना
सुन कर झल्लाना
दूसरी पहन लीजिए ...
अभी समय नहीं है...
रोज रोज कैसे टूटती है?
अभी ही तो सिली थी बटन...
सबेरे ही क्यूँ नहीं देख लेते..
धोबी का असंख्यों बार निकालने की हुमकी देना...
उनका बडबडाना, और
वापस चले जाना
बिन बताये कि बटन का शर्ट से फिर रिश्ता बनेगा या नहीं ....


सने हाथ धो,
पसीने को आँचल से पोछ, 
बडबडाती,
साड़ी को कमर में खोंस
शर्ट से मिलती रंग के धागे को
सुई में पिरोती,
चेहरे पर व्यस्त शिकन सजाये
उनका फिर वापस आना...
और टूटे हुए बटन को थाम
सुई-धागे से
शर्ट पर उन्हें फिर टांकना 
छोटे छोटे ये नन्हे पल
व्यस्त जिंदगी को
एकबारगी ठहरा...
कई एहसास सजा जाते हैं....
कई बार महसूस किया था
कई बार देखा था हमने...

कई बार देखा था हमने...
चेहरे पर उनकी बनावटी लकीरे, 
उनका पास आना, बटन टांकना, हमे उन्हें थामना
हमारी हंसी का, उनके बनावटी गुस्से में घुलना 
मंद-मंद प्यार के बोल से उनका मुस्कुरा उठाना 
गर्म अपनी सांसो को हमारी छाती में झोंकना
आगोश में आ, निरर्थक छुड़ाने की कोशिश करना
होठों का कंपकपाना, बिखरती लटों को समेटना
सुई का बटन से होते हुए शर्ट के अंदर जाना
और नए एहसासों से वापस ऊपर आना
सिलसिला सिलने का कई बार देखा था हमने

दो पल ठहर,
दो पल रोक सबकुछ, कुछ ही पल में
कई पलों को संग जिया था हमने..
माज़ी के पन्नों को कुरेद भी
कई बार इन पलों को सजते देखा था हमने..
कितने एहसास नन्ही सी ये बटन
शर्ट से उधडने के बाद भी दे जाते हुए देखा था हमने
कई बार गुनगुनाया भी था हमने उनके लिए 
तेरे शर्ट का बटन मैं सोनिये....बालों का तेरे मैं क्लिप हो गया....

भागते भागते जिंदगी का कहीं दूर चले जाना
बटन का उधडना,
सोफे के किसी कोने पर अब शर्ट का उतर जाना,
तांड पर सजी कतार में झूलती कपड़ों का विकल्प बनना
नन्हे ये पल कपड़ों के ढेर में सुई सी खो गयी है
तिहाई भर की सूत जिंदगी के रेशों में उलझ गयी है ....

अब भी नेपथ्य से कहीं सुनाई देती है ...
तेरे शर्ट का था मैं बटन सोनिये...


आस......


दरिया के किनारों ने
मिलन कि परवाह कब की
लहरों को उन्होंने
साथ ही मिलकर ही भिगोया है

रेल की पटरियों ने
कहाँ मिल पाने की कभी सोची थी
अपने संग मुसाफिरों को
किनारों तक कई बार पहुँचाया है  

धरा ने भी नभ से
मिलन की चाह तो अनेकों की
ना मिल भी अपने संग कितने
सितारों को संग संजोया है..

राँझा भी कोई किनारा हीर संग
कहाँ पाया था, फिर भी
अपने प्यार से सुनहरी कई शब्दों में
इतिहास संग सजाया था ...
  
सोचता हूँ कि क्यूँ करूँ
मिलन की आस व्यर्थ में..
व्यर्थ क्यूँ करू सुनहरी जिंदगी
अगम्य इस आस में?

करूँ तो बस एक ही आस
कि संग तुम्हारे सजा लूँ मैं
सितारे अपने शुन्य कृष्ण नभ में
खेलूँ लहरों को विश्रंभ भाव में...
 
राँझा नहीं मैं, पर
खुद के ही इतिहास पन्नों पर
सुनहरी शब्दों में बयां कर जाऊं
कि हमे प्यार है जिंदगी से

हमे प्यार हैं जिंदगी से
हमे प्यार है तुमसे

हमे प्यार है तुमसे .....