Dec 24, 2012

क्या हुआ गर रेप हुआ : की फर्क पेंदा है?

काम के व्यस्तता से चूर इतना थक चूका था कि आज सबेरे नींद खुली तों निकल आया था मैं चौपाल पर सीधे. पगडंडियों कों लांघते रास्ते भर का फासला बड़े सुकून से तय किया था मैने. शायद बहुत दिनों से इस शुकून कि तलाश थी. चौपाल पर बैठते ही ददुआ चाचा के ओर मुखातिब हुआ और चाय कि एक प्याले कि गुहार कि. मिट्टी के भांड में चाय तों मिली पर चाय के उस चुस्की में कोई गर्मी ना थी. ददुआ चाचा के झुर्री भरे चेहरे पर भी शिकन के निशान थे. पूछा तों कहने लगे कि “दिल वालों के नगरी दिल्ली में फिर एक लडकी पर बलात्कार हुआ. २३ साल के लडकी कों छह लोगों में सामूहिक बलात्कार किया और फिर छोड़ दिया राह पर नंग धडंग. क्या हुआ दिलवालों के नगरवासियों कों.” बडबडाते हुए ददुआ चाचा चाय के नए खेप कि तैयारी में लग गए. हमने कहा चाचा “क्यूँ सोचते हों इतना?” कहा मैंने  “क्या हुआ गर रेप हुआ : की फर्क पेंदा है?” विस्मित भरे ददुआ चाचा ने एक नाराज़गी वाली भाव हमे दिए और ना जाने क्या बडबडाते रहे. सुनाई ही नहीं दिया. नाराज़ हों गए थे हम से.
दूसरी चुस्की चाय कि ली और खुद ही सोचने लगा अरे ये क्या कह डाला “क्या हुआ गर रेप हुआ : की फर्क पेंदा है?” सच ही तों कहा था मैंने. अब देखिये ना खुद ही. समाज कितना मलिन हों उठा है, पुरुष अपने कों श्रेष्ठ लिंग होने का दावा करते तों हैं, पर इस तरह कि ओछी हरकत करने से बाज नही आते. अब सम्पूर्ण समाज कों मलिन रहित तों नहीं कर सकते ना. जहाँ अच्छे इंसानों की भरमार है वहाँ मलिन स्वभाव के लोग भी तों रहेंगे ही. कमाल जहाँ खिलते हैं कीचड़ तों रहेंगे ही. अब ईश्वर के इस रचना और भेद-भाव कों हम नकार तों नहीं सकते ना. अब मलिन स्वभाव के इंसानों कों इस तरह के ओछी हरकतों से रोक तों सकते ही हैं. पर इस तरह के घटनावों से फायदा भी तों बहुत है. अब ना तों हमारे पास न्यूक्लियर मुद्दा है, ना ही हमारे पास काला धन वापस लाने  का. अन्ना हजारे जी भी सुस्त पड़ गए हैं. रहे उनके चेले चपाटी तों उन्होंने अपने राजनैतिक पार्टी खोल कर शांत हों गए. अब सोच कर देखिये काले धन का मुद्दा था तों कितनी गहमा गहमी थी देश मैं. ऐसा लगा था स्विस बेंक खाली हों कर सारा धन देश में आ जायेगा और देश घूसखोरो से मुक्ति पायेगा. कितना कुछ हुआ था सारा देश एकजुट हों कर एक साथ चला था. देश कि एकता तों खुश हों कर एकजुट हों उठी थी. मुद्दा आया गया. अब कोई मुद्दा ही नहीं था. तों इस रेप के मुद्दे से तों देश कों बाँध लिया जाए. गर “रेप हुआ है तों देश कों की फर्क पेंदा है” ये तों बस एक मुद्दा है.
अब इस मुद्दे कों लेकर सभी चैनल पर जम के बातें होंगी किसी का टीआरपी बढ़ेगा तों किसी का गिरेगा. मुद्दे से जुड़े परिवार वालों कों खोद खोद कर प्रेसवाले पूछेंगे “आपको कैसा लग रहा है”. बस के विभिन्न एनिमेशन बनेंगे और कैसे कैसे रेप हुई थी दर्शायी जायेगी. मोबाइल कंपनीवालों के वारे न्यारे हों जायेंगे. एसएम्एस के पोल से करोड़ों कमाएंगे. फेसबुक पे स्टेटस बदलेंगे. फेसबुक वाले अपने एड से करोडों कमाएंगे. ट्वीटर पर फिल्म जगत और राजनेता अपने अपने प्रतिक्रिया छोड़ेंगे फिर ट्वीटर वाले भी जम के कमाएंगे. कितनों कि कमाई होगी इस मुद्दे से. मुद्दे के मुद्दे से कहाँ किसी कों नाता है.”. कुछ चैनेल तों अब भी शेर और बाघों कों बचाने के लिए बड़े बड़े बातें करेंगी पर रेप समस्या कों रोकने के लिए कोई नहीं आगे बढ़ेगा. अब कितने बच्चियों कों खुद उनके परिवारों ने रेप किया है, मोलेस्ट किया है, कभी किसी ने आवाज़ लगायी है? गांवों शहरों में तों लगभग हर रोज होती हैं...फिर “क्या हुआ गर रेप हुआ: कि फर्क पेंदा है?”

इस मुद्दे से अचानक स्कूल-कोलेज के विद्यार्थी एकजुट हों जायेंगे. गाँव शहर से झुंड बना बना कर विद्यार्थी आयेंगे. विद्रोह सा माहौल होगा. कुछ कॉलेज में नए सेक्रेटरी बनेंगे, कुछ नए राजनेता जन्म लेंगे. शहर के गली चौराहों पर केंडल मार्च होगी. मोम्बतियों की ब्लैक में बिक्री होगी. मार्च में गए विद्यार्थी मार्च के संग अपने फोटो खींच खींच कर फेसबुक में अपलोड करेंगे. पढाई से बीच बीच में छुट्टी मिलेगी. कुछेक कों तों घर से मार्च में जाने की मोहलत मिलेगी जिनसे वे दोस्तों और सहेलियों के संग कहीं घुमने जाने के लिए खर्च करेंगे. उत्सव सा माहौल बनेगा. शिक्षकों कों भी मोहलत मिलेगी. आज तक कभी आपने इस मुद्दे पर किसी राजनेता कों इस्तीफा देते हुए सुना है. अपने राज्य के इस हाल की जिम्मेदारी खुद कों बताते हुए देखा है.? किसी पुलिसिया कों कानून व्यबस्था का जिम्मेदार मान तबादले तक की पहल करते देखा है. हाँ हेड मास्टर कों बयां देते देखा होगा की लड़कियों कों अपने पहनावे पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन इस मुद्दे से कभी उन्हें भी इस्तीफा देते देखा है. “क्या हुआ गर रेप हुआ : कि फर्क पेंदा है?”
सोच कर देखिये हर मुद्दे सा ही ये भी एक मुद्दा ही है. कहीं कुछ नहीं बदलने वाला. बदलेगा तों सिर्फ उस लड़की की जिंदगी, जो कहीं खुशहाल सी थी अब नर्क सी हों उठेंगी. इन सब मुद्दों में उसका चेहरा समाज के सामने आ जायेगा.  और फिर पड़ोसियों कों,  अपने चिर परिचित लोगों, दोस्तों और सहेलियों कों उसे समझाना पड़ेगा. कभी हास तों कभी परिहास का सामना करना पड़ेगा. दिनों महीनों और सालों उसे कभी पुलिस तों कभी कोर्ट के चक्कर काटने पड़ेंगे. बार-बार उसे पुलिस, वकील और जज के सामने इस बहसी कारनामे कों बयान करना पडेगा. बलात्कारी छः कुछ दिनों के लिए जेल मैं रहेंगे. कोई एक वकील खड़ा हों कर उन्हें बेक़सूर साबित करेगा. अंधे कानून कों गवाह और सबूत नहीं दिखेगा, बलात्कारी बेल पर छूट जायेंगे और कुछ सालों बाद बाईज्जत बरी हों जायेंगे. किसी कों कुछ नहीं आयेगा जाएगा.  “क्या हुआ गर रेप हुआ : कि फर्क पेंदा है?”
गर इस मुद्दे कों मुद्दा मानना ही है तों हमे ये स्वीकार करना पड़ेगा  ईश्वर के इस रचना कों की इस पृथ्वी पर कुछ मलिनता विद्यमान है. इन्हें रोकने के लिए हमे खुद से प्रयत्न करने पड़ेंगे. घिनोने इस दुष्कर्म कों रोकने के प्रयास खुद करने पड़ेंगे.  खुद कों हमे इतना चौकौना करना पड़ेगा की घात लगाये इन डकैतों के पाले में हम ना पड़ जाए. अनजाने गलियारों से जब हम जाते हैं तों खुद कों सँभालते हैं या नहीं. खुद कों कहीं ना कहीं हमे तैयार रखना पड़ेगा. सुनसान से गलियों में खुद कों बचाना पड़ेगा. कुछ चंद से सिक्कों कों बचाने के लिए अनजान लोगों से लिफ्ट नहीं लेने में भलाई है.
मलिनता से भरी इस समाज कों हमने तों नहीं बनाया हमे तों ये विरासत में मिली है. इस मलिनता में खुद कों संभालना ही पड़ेगा.    
आज खुद कों गुनाह करने से कोई रोकना नहीं चाहता. आप ही सोचिये ना, कभी आपने मंदिर के लाइन तोड़ शोर्टकट से जल्दी पूजा देने के लिए पंडितों कों कितने बार घूस का चढावा देते हैं. सरकारी ऑफिस में अपने काम कराने के लिए चौकीदार से ले कर आफिसर तक कों कितने बार घूस से हाथ गरम किये हैं. क्या ये दंडनीय अपराध नहीं हैं? अपराध है, आप जानते हैं, पर ये भी जानते हैं की पकडे गए तों क्या होगा? “कि फर्क पेंदा है?” पकड़ने वाले कों घुस खिला देंगे. सच्चाई ये है कि ये जानते हुए भी कि ये अपराध है हम नहीं डरते क्यूंकि हर मरोड़ का एक तोड़ है. तों आज एक अपराधी ने आप से बढ़ के एक और घृणित अपराध किया है. अपराध तों अपराध ही हैं ना. तों फिर आप क्यूँ नाराज़ हैं? “क्या हुआ गर रेप हुआ : कि फर्क पेंदा है?”  यदि मानते हैं इस दलील कों तों बस एक महीने के लिए पुरे साल में, सिर्फ एक महीने आप प्रण ले कि आप अपराधी नहीं बनेंगे किसी भी अपराध में आप खुद संलिग्न नहीं रहेंगे फिर आप उस अपराधी के सजा कि माँग करने के हकदार हैं. हैं हिम्मत?
आज सारे मुद्दे का तोड़ है अपने व्यवस्था कों सँभालने की. आज गर कोई इस तरह का अपराध करे तों कोई शोर नहीं कोई तारीख नहीं. एक कोर्ट बने जिसे हर ऐसे केस कों एक हफ्ते के अंदर निर्णय दे. जहाँ कोई बेल ना हों. सिर्फ सजा हों. ऐसे मुद्दे पर मुद्दा का साबित होना एक मेडिकल रिपोर्ट का होना काफी है वहाँ गवाहों और सबूतों पर घंटों बहस ना हों. एक लडकी के शिकायत ही काफी हों. ऐसे कोर्ट में ना कोई वकील हों ना कोई एड्वोकेट हों तों समाज से चुने हुए दूसरे शहरों के महिला हों ताकि कोई किसी कों इन्फ्लुएंस ना कर सके. एक एनजीओ भी ऐसा सेवा दे सकती हों. फिल्मों के तरह इस कोर्ट पर तारीख पर तारीख के डायलोग ना हों. सजा भी ऐसा कि रूह कांप जाए. कोई सौ दो सौ के जुर्माने में खत्म ना हों जाए. ऐसे कोर्ट हों जहाँ रेप तों क्या मामूली मोलेस्टेशन के भी भयंकर सजा हों. ऐसे कोर्ट कि स्थापना हों फिर बात बनेगी. फिर डरेगा कोई ऐसे अपराध से. फिर कह सकेंगे : “रेप हुआ : अब फर्क पेंदा है”.
इन्टरनेट के ज़माने में ऐसे लोगों कि नुमाईश वेबसाइट पर हों. जहाँ इनके कारनामे जगत जाहिर हों. जिनमें उनके परिवार के नाम हो, उनका जीवन भर का इतिहास हों ताकि हर कोई जान ले कि इन घृणित अपराधियों के कर्म क्या थे. फेसबुक, ट्वीटर, गूगल से उनके प्रोफिएल हटा दी जाए. इन अपराधियों के सारे सरकारी दस्तावेज़ जब्त हों जाये. चाहे वो राशन कार्ड, पासपोर्ट, वोटर आईडी, मार्कशीट, डिग्री, सब कागजात जो उनकी पहचान कराता हों जब्त हों जाये कम से कम पांच-दस सालों के लिए. बैंक अकाउंट जब्त हों जाये. कहीं भी उन्हें बैंक कि अकाउंट, क्रेडिट कार्ड खोलने पर पाबन्दी लग जाए. सारे लोन, सब्सिडी सब कैंसल हों जाये. उनके पत्नियों तक के अधिकार छीन ली जाए. पांच से दस साल तक उन्हें किसी सरकारी या गैर सरकारी ऑफिस में नौकरी ना दी जाए. एक संस्था या वेबसाइट हों जहाँ इन्हें रेजीस्टर किया जाए ताकि हर संस्था नए लोगों कों नौकरी पर रखने से पहले इस वेबसाइट कों चेक करके देखे कि कहीं इस घ्रिन्नित कर्म में किसी तरह से उनका नया मुलाजिम संलिगन तों नहीं. आईटी के इस युग में सरकार के बॉस सबसे सस्ता उपाय तों यही है एक वेबसाइट बनाये और देश के सारे गुनाहगारों कों जिन्हें सजा मिली हों उनके नाम कों रजिस्टर करे ताकि गुनाहगारों कों डर लगे, लोगों कों पता तों चले कि जिनसे वो मिल रहे हैं, या जिनसे वो मेल बढ़ा रहे हैं वो अपराधी रह चूका है या नहीं. देश क्या विदेशों में भी उन्हे रोका जाए. आज हर कोई एक मोबाइल से ही सही पर इन्टरनेट से जुडा है, ये कदम बहुत रंग लाएगी.  तब एक दहसत बनेगी, तब डरेंगे लोग. तब समाज बदलेगा. तब कहेंगे हम : ”हाँ अब फर्क पड़ता है”.
आप कहेंगे मैं तों भावनावों में बह ही गया. पर आप खुद ही सोच कर देखिये क्या मैं सरकार से बहुत कुछ माँग रहा हूँ? बस कुछ नहीं है अपराधियों कों सजा हम देते हैं, वो सजा पाते हैं और वापस आकर कहीं समाज में खो जाते हैं और हम और आप जानते भी नहीं. फिर मौका पाते ही उनमें से कई फिर वही कार्य कर जाता है. अपराधी हमे अपने अपराध से डराते हैं तों हम उन अपराधियों कों उनके किये अपराध के परिणाम से क्यूँ नहीं डरा सकते. सौ अपराधों में से गर हम दस भी इस तरह से रोक पाए तों लाखों अपराध होने से बच जायेंगे.
डर हमे भी लगता है इन अपराधों से. और भले हमे कोई रेप नहीं कर सकता क्यूंकि हम तों मर्द ठहरे, पर रेप जैसे अपराधों से हम भी डरते हैं हमारे भी बहनें हैं, बीवी हैं, बच्चे हैं. ऐसे अपराधों से सुन कर हम काँप उठते हैं. हमारा दिल भी छलनी होता है. पर इसे आज मुद्दे के रूप में ना ले कर इस मुद्दे कों मुद्दे पर ध्यान दे और कुछ ऐसा करे जिससे समाज का हर वर्ग अपराध करने से डरे. ना कि पोस्टर ले कर प्रोटेस्ट करे, लोग हम पर गोली दागे, हंगामे हों और कुछ दिनों बाद सब कुछ ज्यूँ का त्यूं....
चलिए अब मैं निकलू. आज सुबह बड़ी भारी भारी सी शुरू हुई है देखें अब दिन कैसा जायेगा... मैं तों निकला.... आज राह पर माँ काली के मंदिर पर रुका नहीं मैं... शायद नज़रें ना मिला ना पाने का डर था. आज उनके प्रतिरूप पर हम इंसानों ने एक बार फिर कालिख जो पोत डाली थी....
  

1 comment:

लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.