May 16, 2012

रामायण

चौपाल पर सबेरे सबेरे आया तों देखा की भभुआ के पंडित जी का बिजनेस कार्ड पड़ा हुआ हुआ था. देखा तों पास ही में पंडित गिरधारी लाल का साईकिल भी खड़ा था. पूजा पटरी का गट्ठा था लगा हुआ यानी की गिरधारी भईया यही कही हैं..देखा तों मंदिर से चुटिया कों बांधते चले आ रहे थे. कार्ड ध्यान से देखा तो उसमे ईमेल और वेब-साईट भी था मोबाइल नंबर के साथ. हाँ, बच्चों कों पढाया लिखाया था शहर भेज कर, तों पंडिताई में भी कुछ आधुनिकता तों आनी ही थी. चुटिया बाँधा और पीले रंग के कुर्ते से अपनी स्मार्ट फोन निकाली और लगे कुछ करने. पास आये तों कोतुहता से हम पूछ ही बैठे “का गिरधारी भईया, बड़ी मोबाईल ले कर घुमते हैं?” कहने लगे “ भाई हम कों तों पता ही नहीं था इसके बारे में. जब से बिटवा सब सजा गया है हमारी जजमानी तों बढ़ गयी है.. अब तों गाँव छोडिये शहर से लोग पूछने लगे हैं.” हामी भरी हमने, गिरधारी भईया कहने लगे “ जानते हों आशु, अच्छा हुआ भगवन के ज़माने में ऐसा कुछ नहीं था मोबाईल-सोबाईल. नहीं तों बड़े बड़े काव्य नहीं लिखे जाते ...अरे आवुर छोडिये, रामायण, रामचरित मानस, गीता कुछो नहीं होता. हम पंडितों का कोई पंडिताई रह ही नहीं जाता.”  जोर जोर से हसने लगे और साईकिल उठा कर निकाल पड़े.
अब इंजिनियर का वैज्ञानिक दिमाग, और कोतुहल ऐसे कैसे शांत होए. हम लग गए सनधान में. हाँ बात में तों दम थी गिरधारी भईया के. अब आप ही देखिये, ऋषि वाल्मीकि ने रामायण तों लिखी लोगों के पल्ले नहीं पड़ी क्यूंकि संस्कृत में थी. अब इन्टरनेट या मोबाइल रहता लोगों के पास तों गूगल (google) में जाते और और अनुवाद कर लेते. जो समझ जाते वो ब्लॉग बना अपने हिसाब से समझा जाते. रामचरित मनास की तों जरूरत ही नहीं पड़ती, बेचारे तुलसीदास कों पुश्तैनी काम जारी रखना पड़ता या पंडिताई करनी पड़ती.  राम जी के बाबा दशरथ के तीन पत्निय ना होती क्यूंकि कौशल्या जी कों उनके सोसल नेटवर्क पर कड़ी नज़र होती. दो व्याह से पहले हंगामा तों हुआ होता...खैर, ये तों पिताश्री का हश्र होता. राम जी का व्याह भी यूं नहीं होता. लक्षमण जी की पैनी नज़र सीता स्वयम्बर के मेल चैन पर कहीं ना कहीं जरूर पड़ता. सीता पर नज़र उनकी पहली पड़ी थी पर भईया ने भांजी मार दी यह कह कर “भईयवा पहिले  हमार बारी”. लक्षमण जी पहले ही वेब-साईट पर अपने प्रतियोगिता में शामिल होने का आवेदन डाल चुके होते तों राम जी के भाजी मारने का सवाल ही नहीं उठता. जनक जी बे-मतलब शिव जी के धनुष पर खोटी नज़र नहीं डालते और ना ही धनुष टुटा होता.. अरे इतने सुन्दर धनुष कों तों बिन टूटे “हेरिटेज स्टेटस” दे दिया जाता. जनक जी उदघोषण करते “जो भी अपने स्मार्ट फोन से हमारे वेब-साईट कों हेक कर दे, उनका व्याह सीता के साथ होगा. सीधा प्रसारण www swaymbar_of_seeta डाट काम  से होगा. और आप दूर टेलीफोनी से भी आप प्रतियोगिता में शामिल हों सकते हैं. सीता जी के बारे में जानने के लिए यही वेब साईट पर जाए.”  देश क्या समुन्दर पार से भी सीता के उपयुक्त वर प्राप्त होते. राम ना मिलते तों सीता भी खुश होती. वनवास ना जन होता नहीं धरती में डाह करना पड़ता...
खैर व्याह तों ऊपर से लिखी होती राम सीता की जोड़ी बननी थी तों बनती ही. कैकयी के कहने पर राम का वनवास के लिए प्रस्थान भी अनोखा होता. दशरथ के कहने पर राम जी सर झुका कर आज्ञा का पालन करते और कहते “ जो कहियेगा हम करेंगे, लेकिन एक बात है हमरो, तीन चीज़ ले जावेंगे, एगो धनुष, दूजा तीर आवुर तीजा मोबाईल. ई तीनो ले जाएंगे. पईसा तों आप दीजियेगा ना ही, तों मोबाईल के बिल चोदह साल तक भरवाते रहिएगा..कोनों कौतुही नहीं.” कौशल्या जी बिटवा-बहु के खातिर दशरथ जी कों मनवा ही लेती. भारत मिलाप भी आधुनिक ही होता. भरत कों पता चलता तों मेसेंजेर खोल कर राम भईया कों मेसेज भेज देते – “हे ब्रो, माँई के ई व्यवहार से मनवा बड़ी खराब है. जब तक आप नहीं लौटीयेगा कुर्शी तुम्हारा और शाषण मेरा.” ढेर सारे स्माईली लगा के अपने दुःख कों समझाते. मोबाईल से ही राम जी कहते “रीलेक्स ब्रो,ओल्ड फोल्क्स आर लाईक दिस, मेरे बारे में जानने के लिए TEWEETER में @RAM से या FACEBOOK  से  “Ram of Ayodhya” में कभी कभी वाल पर देख लेना. स्टेट्स अपडेट करते रहेंगे. तुम्हारी सीता  भाभी और लक्षमण भी हैं... बस आते रहना कभी कभी. जंगल हों या हम कही भी हों एक दूसरे कों देखते बतियाते रहेंगे ...सो भरत भाई चिल्ल”....
बनवास में रहते राम एंड पार्टी तों मोबाईल से एक एक खबर मिलती रहती,  FACEBOOK से उनके परिवार और चाहने वाले क्या पूरी अयोध्या कों उनकी खबर रहती और चोदह साल का वियोग छोटा लगता. राम जी तों दशरथ के आज्ञा से आये थे. लक्षमण जी तों खामखा फंस गए भक्ति में. थोड़े से इमोशन ठीक रखते तों जाना नहीं पड़ता साथ-साथ.  तुरंत व्याह कर के उर्मिला कों छोड़ कर आना थोडा दुखदायी तों था उनके लिए भी और उर्मिला के लिए. बातें करते रहते तों दुःख कुछ तों कम हुआ होता. सही कह रहा हूँ ना ..... लक्षमण जी कों छोड़ कर कुटिया में राम और सीता का साथ रहना पत्थर दिल कों भी सहन नहीं होता. लक्षमण जी सहन कर गए. रात कों अकेले जब मन उकता जाता अँधेरे में आँखें फाड़े, तों कुछ पल के लिए youtube में  जा कर नैन सूख तों कर लेते विडियो देख कर या कभी मूवी दे कर. फिर भी मन नहीं लगता तों उर्मिला कों अपनी विडियो अपलोड करने कों कह देते. मन भी लगा रहता.
बिना मतलब सोने के हिरन के लोभ में लक्षमण रेखा लांघनी पड़ी सीता जी कों. वेब साईट पर जाती, हिरन पसंद करती और आर्डर दे देती ... DHL COURIER  हिरन भी पहुंचा जाता. ना हिरन ढूँढने राम निकलते  और ना उन्हें ढूँढने लक्षमण. बिना मतलब सीता का किडनेप  रावन कर गया. रावन के पास पर जरूर मोबाईल इन्टरनेट होगी नहीं तों सीता की खबर कैसे पहुंचती. सीता मईया का अपहरण लिखा था.... रावन ने आकाश मार्ग से शायद  KING FISHER AIRLINES से हेलोकोप्टर  भाडा कर के ले गया था, जिसके दरवाज़े खुल गए थे. नहीं तों सीता मईया के गहने  धरती तक कैसे गिरते. बिना मतलब सीता मईया कों चिंता खा गयी. मोबाईल कों छिपा कर रखती,  और लंका पहुँच कर GPS Location भेज देती राम जी कों.. राम जी लोकेशन पा कर बानरों के सेना के साथ सांठ गाँठ ना कर के पातळ के देशो कों संपर्क करते और सेना कों वहीँ उतारते. ना मारा-मारी होती, ना लंका पर पुलिया बनानी पड़ती. सोने की लंका सुरक्षित भी रहती, रावन की बहन सुपर्नेखा का नाक सलामत रहती. रावन अपने राज्य मैं ऐश करता..और आज हम श्रीलंका के बीच के साथ साथ हेरितेज भवन में लंका भी देखते. हाँ, वनवास के समय थोड़ी कमाई भी हों जाती चाय पानी के लिए, गर ब्लॉग बना के google Adsense  का सौदा ले लेते. कितने हिट्स मिलते. गूगल वाले तों कहीं भी उन्हें पैसे दे जाते. इतना ज्यादा कमाई होता कि Vodafone तों राम जी के लाइन कों मुफ्त ही कर देता. Vodafone के इन्टरनेट और मोबाईल क्या सारे इश्तेहार में pug के जगह राम-सीता और लक्षमण के फोटो होते जो फेसबुक से आते.

यूं कहिये कि पूरा रामायण उलट पुलट हुई होती. अरे महाभारत भी ना बचा होता. युद्ध के मैदान का सीन ही देखे तों नहीं आता. भगवान कृष्ण युद्ध के मैंदान में अर्जुन कों कहते, “कर्म करो और फल की चिंता मत करों, क्यूंकि फल तों जनता के SMS वोट या FACEBOOK के LIKE से पता चल जाएगा और गर फिर भी संदेह है तों मेरे फेसबुक पर जा कर मेरा रूप देख... सो हे अर्जुन.. निकाल अपनी मोबाइल और डेक मेरा प्रोफाइल. और बात मेरी समझ आई तों निकाल तीर और धनुष  और युद्ध कर... और हाँ, INDIBLOG  से मेरे ब्लॉग पर जाना तों बिना भूले वोट करना..और फेसबूक पर LIKE कर जाना.” थोड़ी इधर उधर मेल देख, ब्लॉग पर जा खुद कों
आश्वस्त कर अर्जुन युद्ध के लिए तैयार होते. और तीर कमान से निकलते नहीं की कृष्ण फिर टोकते, “हे अर्जुन, युद्ध के शुरू होने से पहले जरा मोबाईल पर रिकॉर्ड कर बटन दबाना....ताकि लोग देख सके युद्ध कों और हमे कुछ कमाई...

खैर, अच्छा  हुआ की उन दिनों तकनीक उन्नत नहीं हुई थी नहीं तों कहाँ रामायण रच पाती और कहाँ महाभारत. हाँ आज लक्षमण हर तरफ दिखाई देते  हैं तों जो परायी नारी के सिर्फ पैरों कों ही देखते हैं. सामने खड़ी खूबसूरत सी नार नहीं दिखती है उन्हें, क्यूँकी नज़र तों  मोबाईल पर गड़ी  होती है, फेसबूक और ट्वीटर में. दशरथ की बात आज कौन राम सुनता है  क्यूंकि ब्लू-टूथ से तों कान में गाने सुने जाते हैं. उर्मिला पास में भले ही हों, लक्ष्मण आज भी YOUTUBE से ऐश कर रहा है. धोबी की बात बनवास से आने के बाद नहीं सुनना पड़ता. ब्लॉग पर वो अपनी बात अपनी मोबाइल से ही भेज चूका होता.... खैर जब स्थिति जब...
मैं तों चला अपने इस लेख कों अपने ब्लॉग पर सजाने..... http://www.indiblogger.in/topic.php?topic=56 जिनके खातीर मैंने ये शब्द सजाये.....
      

2 comments:

  1. Ha ha...nice way to relate internet with 'Ramayana'....

    but agar sahi mein aisa hua hota to !!!!!

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  2. thanks dear... bilkul mobile ke signal ke tarah sara ramayan bhi kahin jaa kar chhup jata...

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
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