May 21, 2012

Application to Invite Lakme Girl by BA





 
Note to Readers: Please leave aside all your intelligence, Knowledge on English, Do not use spell checks.. read this as it is …. Proceed only if you have nothing to read… Headaches Guaranteed

all images are from Google Search
 
inspired by contest:
http://www.indiblogger.in/topic.php?topic=55
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OM
Jai Ma Durge                          Love is God

Date:21 may 2012
Gram :Bhojpur

Dear Madam Elina/Kyra,
  
I am very good here with my family and expect  you are very good and also your family is good

“Writing to you in my blood,
Don’t think it’s an ink
I have died loving you
Don’t think I am alive… “

“Roses are red
Violets are bulu,
Never I  loved anyone
Only I love you…”


My name is Budhuwa “Angrezi”. “Angrezi” is in my native language for “English”. Because I know good English my village people give me this title. I am adult, 5feet 8inch long. I have dark color skin and have long hair on head that goes round and round. I have hair all over my chest and muscular body, because I do good wrestling. I am wrestling champion in my village. I can drive motor cycle and have good youth, vigor and girls of my village are mad on my mojo. My village is in distant part in Bihar. We do not have bulb of light in village as there is no electric. I buy a inverter and my house is full of light.   There is no light so we village people have no tv. Village people talk in street and sometimes dance to pass time.

I will appeal to you to come to my village and spend time with me. If you come to my village for a day, I will be very pleased. I see you in my friend’s house on his computer and found you very beautiful. I fall for your love and affection. You will find interest and you will enjoy my company and my village people’s  company. When you are bore of loud party sound and sand-sand beaches, take a leave and come to my village to spend time in peace. If you decide I pick you from rail station. From station after sometime we have only muddy road and no bus and car can go. I will give you a joy ride on my ox driven cart. I know you will never have ridden a cart, so it would be a good fun for you. I can drive a cart and make run oxes very fast even on mud road. You would like the drive on mud road with fields on both side of the cart. I know you foreign girls are very skin sensitive, my Hirani bhabi (my brother’s wife) uses skin ointment to avoid sun-burning. I have checked it, name is Lakme Sun Expert, I will bring it for you to apply. When we reach our village please put some cloth on your head as village old people don’t like without cloth on head. It is our custom. You would get fun when we would be in village. Village kids are very naughty. Once they see you coming they will run after our cart. They would clap, run and dance behind. They can also shout as “Firangan chachi aa gayi, Firangan chachi aa gayi” (foreigner auntie has come). Please do not mind you girls are very white like milk so they like and love to play. What to do kids will be kids. When you reach my home, don’t get inside. Wait for my family to come. They will garland you and put spot on our head to welcome you. This is our tradition. After having bread and butter breakfast and good talking with family, we will go to fields to enjoy and play.

May 19, 2012

क्यूँ बिन दस्तक आ जाती हों





नहीं जानता की कैसे व्यक्त करू और कैसे इन्हें ढालूं. कहानी, कविता, अनुच्छेद किस रूप में ढालू. बिन किसी रूप में ही सोचे शब्दों कों उन्मुक्त छोड़ दिया है ..... अपने विचारों की तरह..zin तुम्हारे ही तरह
 आज़ाद.. उन्मुक्त...








क्यूँ बिन दस्तक तुम
आ जाती हों दरवाज़े से
नहीं पता तुम्हे?
कि दरवाज़े के इस पार
कुछ लोग बसते हैं
हाँ, ये वही दरवाज़ा है
जिसके पीछे तोहफे में
तुम्हारी दी हुई गणेश की मूर्ति है
जो औरों के लिए सजावट है
पर हर रोज एक अच्छी शुरुआत
और तुम्हे अपने संग पाने की
दुआ मांगने का स्थान है.

May 16, 2012

रामायण

चौपाल पर सबेरे सबेरे आया तों देखा की भभुआ के पंडित जी का बिजनेस कार्ड पड़ा हुआ हुआ था. देखा तों पास ही में पंडित गिरधारी लाल का साईकिल भी खड़ा था. पूजा पटरी का गट्ठा था लगा हुआ यानी की गिरधारी भईया यही कही हैं..देखा तों मंदिर से चुटिया कों बांधते चले आ रहे थे. कार्ड ध्यान से देखा तो उसमे ईमेल और वेब-साईट भी था मोबाइल नंबर के साथ. हाँ, बच्चों कों पढाया लिखाया था शहर भेज कर, तों पंडिताई में भी कुछ आधुनिकता तों आनी ही थी. चुटिया बाँधा और पीले रंग के कुर्ते से अपनी स्मार्ट फोन निकाली और लगे कुछ करने. पास आये तों कोतुहता से हम पूछ ही बैठे “का गिरधारी भईया, बड़ी मोबाईल ले कर घुमते हैं?” कहने लगे “ भाई हम कों तों पता ही नहीं था इसके बारे में. जब से बिटवा सब सजा गया है हमारी जजमानी तों बढ़ गयी है.. अब तों गाँव छोडिये शहर से लोग पूछने लगे हैं.” हामी भरी हमने, गिरधारी भईया कहने लगे “ जानते हों आशु, अच्छा हुआ भगवन के ज़माने में ऐसा कुछ नहीं था मोबाईल-सोबाईल. नहीं तों बड़े बड़े काव्य नहीं लिखे जाते ...अरे आवुर छोडिये, रामायण, रामचरित मानस, गीता कुछो नहीं होता. हम पंडितों का कोई पंडिताई रह ही नहीं जाता.”  जोर जोर से हसने लगे और साईकिल उठा कर निकाल पड़े.
अब इंजिनियर का वैज्ञानिक दिमाग, और कोतुहल ऐसे कैसे शांत होए. हम लग गए सनधान में. हाँ बात में तों दम थी गिरधारी भईया के. अब आप ही देखिये, ऋषि वाल्मीकि ने रामायण तों लिखी लोगों के पल्ले नहीं पड़ी क्यूंकि संस्कृत में थी. अब इन्टरनेट या मोबाइल रहता लोगों के पास तों गूगल (google) में जाते और और अनुवाद कर लेते. जो समझ जाते वो ब्लॉग बना अपने हिसाब से समझा जाते. रामचरित मनास की तों जरूरत ही नहीं पड़ती, बेचारे तुलसीदास कों पुश्तैनी काम जारी रखना पड़ता या पंडिताई करनी पड़ती.  राम जी के बाबा दशरथ के तीन पत्निय ना होती क्यूंकि कौशल्या जी कों उनके सोसल नेटवर्क पर कड़ी नज़र होती. दो व्याह से पहले हंगामा तों हुआ होता...खैर, ये तों पिताश्री का हश्र होता. राम जी का व्याह भी यूं नहीं होता. लक्षमण जी की पैनी नज़र सीता स्वयम्बर के मेल चैन पर कहीं ना कहीं जरूर पड़ता. सीता पर नज़र उनकी पहली पड़ी थी पर भईया ने भांजी मार दी यह कह कर “भईयवा पहिले  हमार बारी”. लक्षमण जी पहले ही वेब-साईट पर अपने प्रतियोगिता में शामिल होने का आवेदन डाल चुके होते तों राम जी के भाजी मारने का सवाल ही नहीं उठता. जनक जी बे-मतलब शिव जी के धनुष पर खोटी नज़र नहीं डालते और ना ही धनुष टुटा होता.. अरे इतने सुन्दर धनुष कों तों बिन टूटे “हेरिटेज स्टेटस” दे दिया जाता. जनक जी उदघोषण करते “जो भी अपने स्मार्ट फोन से हमारे वेब-साईट कों हेक कर दे, उनका व्याह सीता के साथ होगा. सीधा प्रसारण www swaymbar_of_seeta डाट काम  से होगा. और आप दूर टेलीफोनी से भी आप प्रतियोगिता में शामिल हों सकते हैं. सीता जी के बारे में जानने के लिए यही वेब साईट पर जाए.”  देश क्या समुन्दर पार से भी सीता के उपयुक्त वर प्राप्त होते. राम ना मिलते तों सीता भी खुश होती. वनवास ना जन होता नहीं धरती में डाह करना पड़ता...

May 10, 2012

HAPPY 1ST BIRTHDAY TO CHAUPAL


बच्चे का जन्म होना और फिर पहले कदम का लेना, दीवारों के सहारे या कभी उनके चाहने वालों के हाथ थामे एक एक कदम बढ़ा कर चलना सीखना. खड़े होने की कोशिश, चलने की प्रयाश हैं ना एक सुखद अनुभव. एक अनुभव जो उसके चाहने वाले के दिमाग में शायद जन्म भर रह जाती है. ऐसा ही कुछ सुखद सी अनुभव आज मुझे हों रही है. आज के दिन ही शब्दों के दुनिया में एक पृष्ठ जन्मा था “चौपाल”. आज चौपाल की प्रथम जन्मदिवस है. आज चौपाल एक साल का हुआ. चौपाल का जन्म हर बच्चे के जन्म के तरह ही हुआ जहाँ बीज हमने बोया था पर एक-एक शब्दों का शृजन का श्रेय कहीं और नहीं Zin कों ही जाता हैं. Zin ही प्रेरणा थी चौपाल के जन्म का, Zin ही श्रोत हैं भावनाओ के जन्म का. Zin से ही जुडी कई बाते हैं. शुक्रगुज़ार हूँ ईश्वर का, सुप्त पड़े अपने एक बड़े हिस्से कों जिन्हें मैं कभी समझ ही नहीं पाया था उन्हें Zin ने उसकाया और बढ़ावा दिया. आज आपके सामने अपने भावनावों कों रख पाने की हिम्मत कर पता हूँ... शुक्रिया Zin....

Zin श्रेय थी शब्दों कों हलक से बाहर निकालने की तों http://www.indiblogger.in  कों श्रेय दूँगा, जिनके चलते अपने आप परखने का साहस कर पाया. ना केवल ये साईट मेरी पहली साईट थी जहाँ अपने चिट्ठों कों सजा सका बल्कि पहली बार किसी भी प्रतियोगिता में भाग लेने की हिमाकत कर सका. और पहले ही बार जीत गया. यूं समझिए की बच्चे ने कदम रखना सीखा ही था कि थामने के लिए पास एक दिवार मिल गयी और थाम कर खड़ा हों गया. पहले बार की जीत की खुशी तों है ही पर इस बात की खुशी ज्यादा हुई कि खुद कों एक अदना लेखक सा महसूस कर सका.. अपने आप का परिचय एक नए तरीके से कर पाया ...शुक्रिया http://www.indiblogger.in for making me believe in myself….

चौपाल शायद एक चिठ्ठे के तरह जन्म लेता और एक चिठ्ठे की मौत पा जाता, पर नहीं, साल भर में कई लोगों ने सराहा. अपने शब्द छोड़ एक प्रतिक्रिया के रूप में छोड़ गए. हाँ आज भी कम लोग हैं पढ़ने वालों के लिस्ट में, पर मैं जानता हूँ  यदि लिखने कि गुणवत्ता बढ़ा सकू, उन्हें और ढंग से सजा सकू शायद और लोग पसंद कर जाए..पर एक एक प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत मायने रखती है और आप लोगों का यहाँ आना ही मेरे लिए बहुत है... शुक्रिया दोस्तों...आपके एक एक शब्दों का मैं आभारी रहूँगा...और आपके आशीर्वाद चाहूँगा अपने चौपाल के लिए....

यदि हों सके तों जब कभी दुआ में हाथ आपके उठे, एक दुआ करे कि  ZIN, जो चौपाल कि जननी है, वो हमेशा खुश रहे और दुनिया कि सारी खुशियाँ उन्हें मिले...Amin!!!!!!!!!

ZIN....
आज तुम्हारे लिखे 
कुछ शब्दों की चाहत है 
अपने  शब्दों कों 
उन्मुक्त कर 
आज तुम  पहली बार अपने
चौपाल 
कों सजा जाओ....
शुक्रिया  शब्दों कों सजाने की  हिम्मत 
मुझे  देने के लिए
१०/५/२०१२

May 6, 2012

एक इन्टरनेट, एक मोबाइल

पांच सितारा होटल के कमरे में Sony Xperia  पर उँगलियों से खेलते-खेलते मन बात कौंधी कि कितना कुछ बदल गया है. हम भी बदल गए हैं समय के साथ-साथ, कभी दूर से किसी होटल कों देखते तों इच्छा होती कि कुछ पल के लिए ही सही एक बार ठहर कर देखा जाए कैसा लगता है. समय ने कैसी रूप धरी कि अब बस होटलों में कभी एक रात तों कभी दो और कभी हफ्ते भर रुकना आदात सी पड़ गयी.  दाल के सूप कों लेंटिल सूप कह कर हम बड़े चाव से अभी-अभी पी गए. घर में होते तों दाल देखते ही नाक-भौं बन जाती. सब कुछ बदल गया है और इस संसार में गर कुछ नहीं बदलता तों वो है बदलाव. समय का पहिया कही तेज तों कहीं मध्यम गति से घूमते रहता है. चमचमाती सड़कों में भागते दौड़ते गाड़ियों का लय तों रुकता ही नहीं. रुक कर कभी मन मुड़े कहीं तों, चमचमाने के नाम पर सिर्फ सितारे साथ चमकते है घुप रात के अँधेरे में. भागती गाड़ियों के सफर से जब भी मैं थम जाता हूँ तों अपने आप कों ढूँढने, अपने अस्तित्व कों बरकरार रखने चला जाता हूँ वहीँ जहाँ आज भी बिजली के खम्भे बिन तार के बरसों से पड़े हैं. ना कोई तार, ना उसमे से गुजरती बिजली. अँधेरे दूर से गर कोई घर चमकता दीखता है तों, उसके सम्पन्नता का आभास चमक से पहले पहुँच जाती है. नहीं ऐसा नहीं कि बिजली विभाग निक्कमी है या सरकार. मेरे गाँव के लोग ही माफिया सा बन, जब भी तार कों खम्भे से जोड़ते है रात के सन्नाटे में तार गायब कर जाते हैं.
हाँ, कुछ महीने ही अपने आप कों जोड़े रखने हम गाँव पहुँचे थे. गाँव में एक चाचा की बिटिया की शादी थी. बचपन से ही हमें बहुत मानते थे और हम उन्हें और उनकी बिटिया की शादी हों और हम ना पहुंचे. सुबह से ही सबका आना जाना घर पर था. शाम हुई तों पहुँच गए चौपाल. चहल पहल बढ़ गयी थी गाँव में.. दो ही तों हैं हम जो विदेश में रहते है. एक हम और एक बबलुवा. बबलुवा वही विकास जी. हम ही ले गए थे, बड़ा स्नेह हैं उस से. थोडा पढ़ा लिखा है. छोटी सी नौकरी दुबई में करता है. अब हम आये तों गाँव के सब आ जाते है. चौपाल महफ़िल सी हों जाती है. बातों बातों में ध्यान आया अँधेरे एक कोने में लजवंती भाभी बबुआ कों कमर में थामे खड़ी है. शरमाती है, इसलिए बुजुर्गों के सामने आ नहीं पा रही थी. मैं दौड के गया तों पैर छूने लगी. कुछ कही नहीं, बस एकटुक देखते रहीं. बबलूवा कों ढूंढ रही थी मुझमे. तीन बरस हों गए थे बबुआ पेट में था तब ही की बात है. बबलूवा कों हम दुबई भिजवा दिए थे कमाने. पूछे हम “का हुआ बबलुवा फोन नहीं किया का. काहे उदास हों? आ जाएगा गर्मी में अबकी.” कुछ नहीं बोली लजवंती. सर पर आँचल संभाले और कमर पर तीन साल का बवुआ कों थामे, सर नीचे कर एकटुक सा ज़मीं कों ताकते रही. खाली पैर दौड कर आई थी हमारे आने की खबर सुन. पैर के ऊँगली से जमीं खोद रही थी और आँखों से टपटप आंसू. व्याह के वक्त सोलह की थी अब उन्नीस कि हुई होगी. इतनी नन्ही सी थी लजवंती.